टिहरी झील का इतिहास: पानी में डूबा एक शहर

उत्तराखंड न केवल देवभूमि है, बल्कि यह नदियों और पहाड़ों की भूमि भी है। टिहरी, जो कभी उत्तराखंड के भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर स्थित एक छोटा सा कस्बा था, अब पानी में डूब चुका है। इस कस्बे को एक बड़े जलाशय के निर्माण के लिए जलमग्न कर दिया गया और इस तरह पुरानी टिहरी, एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील, टिहरी झील बन गई। टिहरी शहर को खाली कर दिया गया ताकि टिहरी बांध के लिए जगह बनाई जा सके और वहां की आबादी को नए टिहरी शहर में स्थानांतरित कर दिया गया।

जब टिहरी बांध बनाया गया था, तब राज्य सरकार (उत्तराखंड) ने प्रसिद्ध टिहरी झील को साहसिक पर्यटन में बदलने का निर्णय लिया। टिहरी झील में निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं:

  • नौकायन
  • जेट स्पीड बोट राइड
  • वॉटर स्कीइंग
  • ज़ॉर्बिंग
  • बनाना बोट राइड
  • बैंडवागन बोट राइड
  • हॉटडॉग राइड
  • पैराग्लाइडिंग

पुरानी टिहरी का इतिहास

पुराना टिहरी शहर भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर स्थित था। इसे पहले गणेशप्रयाग के नाम से जाना जाता था। यह गढ़वाल जिले के निकट स्थित था और इसकी भौगोलिक विशेषताएँ भी गढ़वाल के समान थीं। टिहरी बांध के निर्माण ने पुराने टिहरी शहर को पूरी तरह से जलमग्न कर दिया, और वहां की आबादी को नए टिहरी शहर में स्थानांतरित कर दिया गया। यह शहर टिहरी बांध के खिलाफ सुंदरलाल बहुगुणा और उनके अनुयायियों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों के लिए भी प्रसिद्ध था। वर्तमान में, पुराना टिहरी शहर अब अस्तित्व में नहीं है।

नई टिहरी का निर्माण


नई टिहरी एक नवनिर्मित शहर और टिहरी गढ़वाल का जिला मुख्यालय है। यह समुद्र तल से 1550 से 1950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक आधुनिक और सुव्यवस्थित शहर है जो चम्बा से 11 किलोमीटर और पुरानी टिहरी से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बांध निर्माण के फलस्वरूप पुरानी टिहरी शहर के स्थान पर 45 किलोमीटर लंबी एक कृत्रिम झील का निर्माण हुआ है। वर्तमान में यह झील पर्यटन और आकर्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गई है।
सामान्य जानकारी


ऊंचाई: 1550 से 1950 मीटर तक
भाषा: गढ़वाली, हिंदी और अंग्रेजी
पहनावा: ग्रीष्मकालीन: सामान्य, शीतकालीन: ऊनी


तो यह है टिहरी झील की कहानी, कैसे एक बसे बसाए शहर को बांध बनाने के लिए डूबा दिया गया। कैसे लोगों को अपने घरों को छोड़कर जाना पड़ा, कैसे नई टिहरी बसाई गई और पुरानी टिहरी का अस्तित्व पानी में डूब गया। कहा जाता है कि गर्मियों में जब टिहरी डैम की झील का जलस्तर घटता है, तो उस शहर की इमारतें और घरों के अवशेष दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें देखकर पुरानी टिहरीवासियों की यादें ताजा हो जाती हैं और उनकी आंखें नम हो जाती हैं।


टिहरी का ग्रामीण जीवन और संस्कृति


टिहरी का ग्रामीण जीवन और संस्कृति बहुत ही समृद्ध और विविधतापूर्ण है। यह क्षेत्र उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में स्थित है, जहां की प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ी जीवनशैली, और पारंपरिक धरोहरें अद्वितीय हैं। टिहरी के ग्रामीण जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विवरण इस प्रकार है:


ग्रामीण जीवन :


आवास और भवन निर्माण : यहाँ के गाँवों में घर आमतौर पर पत्थर, मिट्टी, और लकड़ी से बने होते हैं। पारंपरिक घरों में छतें स्लेट या घास की होती हैं, जो मौसम के हिसाब से अनुकूल होती हैं।

कृषि और आजीविका :

टिहरी के ग्रामीण इलाकों में कृषि मुख्य आजीविका का साधन है। लोग यहाँ मक्का, गेहूं, चावल, और दालों की खेती करते हैं। इसके साथ ही लोग पशुपालन और बागवानी भी करते हैं। सेब, अखरोट, और अन्य फल यहाँ के प्रमुख बागवानी उत्पाद हैं।


पारिवारिक जीवन :

ग्रामीण समाज में परिवार का बड़ा महत्व होता है। लोग सामूहिकता में विश्वास करते हैं और एक-दूसरे की सहायता करते हैं। यहाँ का पारिवारिक जीवन सरल और स्नेहपूर्ण होता है।


शिक्षा और स्वास्थ्य:

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, लेकिन सरकारी प्रयासों और गैर-सरकारी संगठनों की मदद से सुधार हो रहा है। प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था है, और कुछ जगहों पर माध्यमिक शिक्षा के स्कूल भी हैं।


पारंपरिक पोशाक :

यहाँ के लोग पारंपरिक गढ़वाली पोशाक पहनते हैं। पुरुष अक्सर कुर्ता-पायजामा और ऊनी टोपी पहनते हैं, जबकि महिलाएं घाघरा-चोली और अंगरखा पहनती हैं। खास अवसरों पर महिलाएं सोने-चांदी के आभूषण भी पहनती हैं।


भाषा और बोली :

यहाँ की प्रमुख भाषा गढ़वाली है, जो स्थानीय संवाद का मुख्य माध्यम है। हिंदी भी व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है।


लोकगीत और नृत्य :

टिहरी की संस्कृति में लोकगीत और लोकनृत्य का विशेष स्थान है। “जागरों”, “पांडव नृत्य” और “रामलीला” जैसे सांस्कृतिक आयोजन यहाँ के प्रमुख हैं। त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के दौरान ये लोक कलाएँ जीवंत हो उठती हैं।


त्योहार और धार्मिक जीवन :

यहाँ के लोग विभिन्न हिंदू त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं, जैसे कि दिवाली, होली, और दशहरा। इसके अलावा, स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा भी की जाती है। गाँवों में सामूहिक पूजा और मेलों का आयोजन होता है, जहाँ दूर-दूर से लोग आते हैं।


खान-पान :

टिहरी के ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक गढ़वाली व्यंजन जैसे “काफुली”, “फाणू”, “चैंसू”, और “मंडुए की रोटी” प्रमुख हैं। यहाँ का खाना साधारण, पौष्टिक और स्थानीय उत्पादों पर आधारित होता है।

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन:


प्राकृतिक सुंदरता:

टिहरी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के पहाड़, नदियाँ, और झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। टिहरी झील और टिहरी बांध इस क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।


पर्यावरण संरक्षण:

ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पर्यावरण संरक्षण को लेकर सजग हैं। जंगलों का संरक्षण, जल संसाधनों की देखभाल, और जैव विविधता की सुरक्षा के प्रति ग्रामीणों की गहरी समझ है।


सामाजिक संरचना और परंपराएँ


जातीय संरचना:

टिहरी के ग्रामीण समाज में विभिन्न जातियों और समुदायों का समावेश है। यहाँ के लोग मिल-जुलकर रहते हैं और जातिगत भेदभाव बहुत कम होता है।


पारंपरिक विधि-विधान:

विवाह, जन्म, और मृत्यु जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। ये रीति-रिवाज पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं और समाज में इनका बहुत महत्व है।

टिहरी का ग्रामीण जीवन कठिन होने के बावजूद भी सादगी और संतोष से भरा हुआ है। यहाँ की संस्कृति, प्रकृति से गहरे जुड़ी हुई है, जो इस क्षेत्र की पहचान को और भी मजबूत बनाती है।

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