हिमालय की सुंदर पर्वतों के बीच बसा उत्तराखंड, जो अपनी संस्कृति और प्राचीन मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, यहां की लोक कथाओं और संगीत का विवरण मिलेगा।
इन्हीं में से एक है पांडव नृत्य उत्तराखंड का पारंपरिक लोक नृत्य। आइए आपको इसके बारे में संक्षेप में बताते हैं।

पांडव नृत्य का इतिहास
यह नृत्य पाँच भाई पांडवों के जीवन से संबंधित है।
माना जाता है कि पांडवों ने वनवास, अज्ञातवास, और शिव जी की कृपा पाने के लिए विभिन्न स्थानों पर यात्रा की और अंत में स्वर्ग की यात्रा के लिए यहाँ आए थे।
महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अपने अस्त्र-शस्त्र त्यागने का आदेश दिया था।
इसीलिए पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र उत्तराखंड के लोगों को सौंप दिए।
उसके बाद वे लोग स्वर्ग की यात्रा के लिए निकल पड़े थे।
जहाँ-जहाँ इन लोगों ने अपने अस्त्र छोड़े थे, वहाँ के गाँव के लोग उसकी पूजा करते हैं और पांडव नृत्य का आयोजन करते हैं।
इसका उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में भी किया गया है।
पांडव नृत्य कब मनाया जाता है?
पांडव नृत्य गढ़वाल के कई गाँवों में नवंबर से फरवरी के महीने में किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि नवंबर-दिसंबर तक जब फसल पूरी हो जाती है,
तब लोग खाली समय में पांडव नृत्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
यह नृत्य अच्छी फसल की कामना और गाँव के लोगों की खुशहाली के लिए किया जाता है।
पांडव नृत्य किन-किन क्षेत्रों में होता है?
पांडव नृत्य रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के उन क्षेत्रों में होता है, जो केदारनाथ और बद्रीनाथ धामों के बीच स्थित गाँवों में आते हैं।
पांडव नृत्य क्यों मनाया जाता है?
पांडव नृत्य करवाने के पीछे लोग अपने-अपने अलग-अलग मत देते हैं।
कहा जाता है कि मुख्य रूप से गाँव की खुशहाली और अच्छी फसल उगने के लिए कामना करते हैं।
वहाँ के लोगों का मानना यह भी है कि पांडव लीला के बाद गोवंश में होने वाला खुरपका रोग ठीक हो जाता है, इसलिए पांडव लीला का आयोजन करते हैं, जिसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
पांडव नृत्य करने वालों को क्या बोलते हैं ?
जो लोग पांडव नृत्य करते हैं, उन्हें पश्वा कहते हैं।
गढ़वाल क्षेत्र के पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल और दमाऊं, जिनमें अलौकिक शक्तियाँ होती हैं, इनके थाप के द्वारा पांडव नृत्य किया जाता है।
विशेष थाप पर विशेष पांडव अवतरित होते हैं, जैसे युधिष्ठिर के पश्वा के आने की एक अलग थाप होती है।
उसी प्रकार भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव आदि की आने की भी अलग-अलग थाप होती हैं।
पांडव पश्वा उन्हीं पर आते हैं जिनके परिवार में यह पहले भी अवतरित होते आए हैं।
ढोली पांडव नृत्य का सूत्रधार होता है।
ढोली, महाभारत की कथा के ज्ञाता होते हैं और वे लोग गीत और कथाओं से पांडव नृत्य में समा बांधते हैं।
इनके साथ गाँव के बुजुर्ग, जिन्हें कहानियाँ आती हैं, वे भी गायन के जरिये इसका हिस्सा बनते हैं।
पांडव नृत्य मैं कितने लोग शामिल होते हैं ?
पांडव नृत्य में कुल 13 पात्र शामिल होते हैं, जिनमें द्रौपदी, भगवान नारायण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, हनुमान, अग्नि बाण, मालाफुलारी, भवरिक और कल्याल्वार होते हैं।
पांडव नृत्य में इन सभी का अहम योगदान रहता है।
पांडव नृत्य का आयोजन कैसे होता है?
पांडव नृत्य के आयोजन में गाँव वालों द्वारा पंचायत बुलाकर इस आयोजन की तैयारी की शुरुआत की जाती है।
सभी गाँव वालों के विचार और सहमति से तय की गई तिथि पर लोग पांडव चौक पर एकत्रित होते हैं।
पांडव चौक उसे कहते हैं जहाँ पांडव नृत्य का आयोजन होता है।
इस प्रकार उत्तराखंड का यह सुंदर लोक नृत्य, पांडव नृत्य, बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
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